पद्म पुराण के मुताबिक नदी के किनारे या मंदिरों में दीप दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। और लक्ष्मी मां की असीम कृपा हम पर बरसती है। दीपदान एक प्रकार की विधि है, जिसकी मदद से मनुष्य (human) प्रभु के समक्ष निवेदन (request) प्रकट कर सकते हैं। दीपदान का शाब्दिक अर्थ है दीपक का दान करना या फिर दीप जलाकर उसे उचित स्थान पर रखना।
दीपक प्रकाश, भयनाशक, ज्ञान अंधकार व विपत्ति के विनाश का प्रतीक (symbol) है। इस प्रक्रिया में दीपक के पात्र का भी विशेष महत्व है। यदि दीपक मिट्टी का हो, तो वह सात्विक कार्यों में प्रयोग होता है। और यदि दीपक धातु का हो तो, तांत्रिक कामों (tantrik karya) में इसका प्रयोग किया जाता है। अतः हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, दीपदान हर विपत्ति से निवारण का सर्व श्रेष्ठ उपाय है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य किसी मंदिर या घर के ही मंदिर में दीप का दान करता है, वह हर सुखों को प्राप्त कर लेता है। और उसे मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति होती है। दीप प्रज्ज्वलित कर उसे देवी-देवताओं के पास रख आना या नदी में प्रवाहित करना भी दीपदान का एक उदाहरण माना जाता है।
दीपदान दशाश्वमेध घाट या राजेंद्र प्रसाद घाट या अस्सी घाट पर किया जायेगा। साथ ही साथ आपको उसका फोटो whatsApp पर send किया जाएगा।
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